Health : शंखनाद से विषाणु होते हैं नष्ट
Health: Viruses are destroyed by blowing conch shell.
Health : मानव के लिए शंखध्वनि श्रवणोपयोगी है। शंखध्वनि में प्रदूषण दूर करने की अद्भुत क्षमता है। यही कारण है कि कथा-पूजा-आरती व प्रवचन के समय एकत्रित सदस्य समुदाय की श्वास-प्रश्वास क्रिया द्वारा फैलने वाले प्रदूषण को दूर करने के लिये सर्व प्रथम शंख-ध्वनि करने भी प्रथा है। इससे एकत्रित जन समुदाय का ध्यान भी एक ओर आकृष्ट कर केंद्रित किया जाता है।
प्राचीन काल में शंख सब घरों में पाया जाता था। इसे दैनिक पूजा-अर्चना में स्थान दिया गया था। साधु समाज ही नहीं, गृहस्थों के घरों में भी शंख अनिवार्य रूप से रहता था। आज भी सभी साधु समाज और देवताओं में शंख को प्रमुख स्थान प्राप्त है।
कालान्तर में एक समय ऐसा आया जब विधर्मी शासकों ने जो इसके गुणों से अपरिचित रहे होंगे, इसकी ध्वनि पर मौखिक प्रतिबंध लगा दिया। जो शंख बजाता था, उसे दण्डित किया जाता था। भयभीत होकर हिन्दुओं ने अपने घर में शंख रखना ही बन्द कर दिया। मात्रा कुछ पूजा-पाठ में लगे लोग ही इसे रखते रहे। प्रतिबंध के भय से धीरे-धीरे घरों से शंख लुप्त होता चला गया और इसके महत्त्व से लोग अपरिचित होने लग गए।
देवासुरों द्वारा शंख की उत्पत्ति (Origin of conch by Devasura)
शंख की उत्पति देवासुरों द्वारा किये गये समुद्र मंथन के दौरान चैदह रत्नों में से प्राप्त एक रत्न के रूप में हुई। पांचजन्य नामक शंख समुद्र मंथन के क्रम में प्राप्त हुआ था जो अद्भुत स्वर, रूप और गुणों से सम्पन्न था। उसे भगवान् विष्णु ने स्वयं ही धारण कर लिया। तब से विष्णु के आयुध के रूप में शंख की पूजा होने लगी।
शंख समुद्र की घोंघा जाति का एक प्राणिज द्रव्य है। यह दो प्रकार का-दक्षिणावर्ती तथा वामवर्ती होता है। दक्षिणावर्ती शंख का पेट दक्षिण की ओर खुला होता है। यह बजाने के काम में नहीं आता क्योंकि इसका मुंह बन्द होता है। इसका बजना अशुभ माना जाता है। इसका प्रयोग अध्र्य देने के लिए विशेषतः किया जाता है।
रोगोत्पादक कीटाणु (Disease causing Germs)
वामवर्ती शंख का पेट बायीं ओर खुला होता है। इसको बजाने के लिए छिद्र होता है। इसकी ध्वनि से रोगोत्पादक कीटाणु कमजोर पड़ जाते हैं और अनेकानेक बीमारियां भाग खड़ी होती हैं। यह जिस घर में रहता है, वहां लक्ष्मी का निवास माना जाता है।
अशान्ति कारक तत्वों का पलायन
अथर्ववेद के अनुसार शंख-ध्वनि व शंख जल के प्रभाव से बाधा आदि अशान्ति कारक तत्वों का पलायन हो जाता है। रणवीर भक्ति रत्नाकर में शंखनाद के विषय में लिखा गया है कि ध्वनि (नाद) से बड़ा कोई मंत्रा नहीं है। ध्वनि के निःसारण की विधि जानकर उसका यथोचित समय पर प्रयोग करने के समान कोई पूजा नहीं है। विधि विहीन स्वर हानिप्रद भी हो सकता है।
विश्वविख्यात भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु (World famous Indian scientist Jagdish Chandra Basu) ने अपने यंत्रों द्वारा यह खोज जिया था कि एकबार शंख फूंकने पर उसकी ध्वनि जहाँ तक जाती है, वहाँ तक अनेक बीमारियों के कीटाणुओं के दिल दहल जाते हैं और ध्वनि स्पंदन से वे मूर्छित हो जाते हैं। यदि निरन्तर प्रतिदिन यह क्रिया चालू रखी जाय तो फिर वहाँ का वायुमंडल ऐसे कीटाणुओं से सर्वथा मुक्त हो जाता है।
क्षयरोग, हैजा आदि के कीटाणु का खात्मा
शंख ध्वनि से क्षयरोग, हैजा आदि के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार प्रति सैकेण्ड 27 घनफुट वायु शक्ति की तीव्रता से बजाये हुए शंख के प्रभाव से 1200 घनफुट दूरी तक स्थित कीटाणु समाप्त हो जाते हैं जबकि 260 घनफुट दूर तक के कीटाणु मूर्छित हो जाते हैं।
मूकता और हकलापन (Muteness and Stuttering) दूर करने में सहायक
मूकता और हकलापन दूर करने के लिए निरंतर शंखध्वनि श्रवण करना अचूक औषधि है। अगर वे व्यक्ति स्वयं शंख फूंकें तो कुछ समय के बाद मूकता और हकलापन अवश्य दूर हो जाते हैं। बधिरता (बहरापन) को भी शंखनाद दूर करता है। रोगी के कान से करीब दो फिट की दूरी से नियमित शंख ध्वनि सुनाते रहने से धीरे-धीरे बहरापन दूर होने लग जाता है और श्रवणशक्ति पुनः लौट आती है।
शंख ध्वनि सुनने से हार्ट-अटैक नहीं होता
निरंतर शंखध्वनि सुनने से हृदयावरोध (हार्ट-अटैक) नहीं होता। शंख फूंकने वाले व्यक्ति के फेफड़े शक्तिशाली हो जाते हैं क्योंकि शंख फूंकते समय पहले हवा फेफड़ों में संग्रहित होती है, फिर उसे मुंह में भरकर शंख छिद्र में फूंकते हैं। इससे आंत, श्वासनली व फेफड़ों को एक साथ काम करना पड़ता है।
यह प्रक्रिया यदि निरंतर की जाय तो दमा, खांसी, प्लीहा, यकृतक्षय आदि रोग समूल नष्ट हो जाते हैं और स्वस्थ व्यक्ति दीर्घ जीवन तक इन रोगों से ग्रस्त नहीं होते। शीतपित्त, श्वेतप्रदर, गर्भाशय विकार आदि रोग भी शंखनाद के प्रभाव से दूर हो जाते हैं।