Ladies First : औरत होने का लाभ उठाती औरतें
Women taking advantage of being women
Ladies First : आज औरत का दखल हर क्षेत्र में पुरूष के समानान्तर है। अपनी मेहनत. कौशल और बुद्धिबल से उसने पुरूष की तरह ही सफल प्रशासक, राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिक, कलाकार, उच्च पदाधिकारी, बुद्धिजीवी, इंजीनियरए डाॅक्टर, वकील, व्यवसायी यहां तक कि पायलट और सैनिक भी बनकर दिखा दिया है और खुद पर लगे अक्षमता के लेबल को वह झूठा साबित कर चुकी है।
उस मुकाम पर पहुंचकर लाखों पुरूषों से बराबरी का दावा औरत कर ले लेकिन संसार को चलाने के लिए उसका औरत बने रहना जरूरी है वर्ना जीवन में क्या आकर्षण रह जाएगा। जीवन का आधार है यह आकर्षण जिस पर दुनियां टिकी है और जिससे जीवन रसमय है, रंगीन है, रोमांटिक है।
समानता का दम
समानता का दम आज नारी जरूर भरने लगी है लेकिन साथ ही वह विशेषाधिकारों की मांग भी कर रही है। स्वाभाविक है कि पुरूष वर्ग को यह बात नागवार होगी। एक तो अपने क्षेत्र में घुसपैठ उसे अपने अधिकारों का हनन लग रही है, तिस पर विशेषाधिकारों की मांग भी। क्या इस तरह अब वह पुरूष वर्ग का शोषण करने पर नहीं उतर आई है।
‘लेडीज फर्स्ट’ (Ladies First) का फायदा
लंबी लाइन में कहीं भी देखिए, चाहे यात्रा का टिकट लेना हो या पोस्ट ऑफ़िस, बैंक की भीड़ हो लेकिन ‘लेडीज फर्स्ट’ का फायदा उसे मिल जाता है। बसों, ट्रेनों, मेट्रो में इनके लिए जगह सुरक्षित होती है, यहां तक तो ठीक है लेकिन विरोध तब होता है जब नौकरी के लिए भी वे आरक्षण चाहती हैं। ऐसे में बेरोजगार लोगों में उनके प्रति क्षोभ स्वाभाविक और जायज भी है।
पुरूष पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी
पुरूष पर नौकरी करके पूरे परिवार का भरण पोषण करने की जिम्मेदारी होती है जबकि औरतें नौकरी मजबूरी में कम शौकिया ज्यादा करती हैं। किसी हद तक आरक्षण पिछड़ी जाति के लोगों के लिए ही उचित है। नौकरी कर पुरूष के बराबर कमाने वाली अगर ब्याहता है तो पति की तनख्वाह पर भी ऐश करने वाली औरत आरक्षण का दोहरा फायदा उठाने की हकदार कैसे हो गई?
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तपती दोपहर में अपने जरूरी कार्यों को छोड़कर घंटों से लोग लाइन में खड़े हैं। एक मेमसाहब कार से उतरती हैं। पति से टाटा बाय-बाय करती हैं। ऊंची एड़ी खटकाती, पर्स झुलाती, बालों को झटक कर एक देहाती को जिसका नंबर आने ही वाला था, पैसे देते हुए अपने लिए गुड़गांव का एक टिकट लेने का आदेश फर्माती हैं। लाइन में पीछे एक बूढ़ा बेदम खांस रहा है, लेकिन वह चूंकि पुरूष है उसके लिए कोई रियायत नहीं।
पुरूषों को मूर्ख बनाकर काम निकलवाना
औरत जवान हो, तिस पर खूबसूरत भी हो, टैक्ट्स आते हों तो पुरूषों को मूर्ख बनाकर आसानी से अपना काम निकलवा लेती है। जरा हंसकर बात की, अदायें दिखाईं, तिरछी चितवन के बाण चलाये, हर जगह उन्हें प्रिफरेंस मिल जाएगा चाहे कहीं पर टिकट लेना हो, बस रूकवानी हो या प्रमोशन लेना हो।
बचपन से ही तरजीह (Ladies First)
कार्यस्थल का वातावरण जिनसे रंगीन रहता हो ऐसी नाजनीनों को बदशक्ल, भद्दे आदमियों के मुकाबले अगर इंटरव्यू में तरजीह मिलती हो तो उसमें आश्चर्य भी क्या। यह गुण औरतों में स्कूल, काॅलेज से ही बल्कि यूं कहें कि बचपन से ही उजागर होने लगता है जब सुंदर और प्यारी-सी दिखने वाली डाॅली को पापा लाड जताते हुए उसकी सेवा भाइयों से करवाते हैं, उसमें तभी से अपने औरत होने का दंभ समाने लगता है जिससे प्रेरित हो वह पुरूषों को उंगलियों पर नचाना शुरू कर देती है।
खूबसूरती का भ्रम (Illusion of Beauty)
जैसे हर औरत फ्लर्ट नहीं होती, वैसे ही हर पुरूष दिलफेंक मजनूं नहीं होता लेकिन खूबसूरत औरत को भ्रम होता है कि हर बाहरी व्यक्ति उसे बुरी नजर से देखता है और अगर किसी निहायत शरीफ व्यक्ति से उसका पाला पड़ता है जो कार्यालय में या कहीं भी उसकी मर्जी के खिलाफ जाता है तो वह आसानी से उसके चरित्र पर दोष लगाकर सब की सहानुभूति बटोर लेती है।
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आजकल औरतों का जमाना है (Era of Women)
नौकरी तो नौकरी है। डेस्कवर्क ही तो नहीं होता है वहां और भी कई कार्य होते हैं मसलन फील्ड वर्क, टूर पर जाना, नाइट ड्यूटी, सरप्राइज तथा फ्लाइंग विजिट जिन्हें करने से औरतें बचना चाहती हैं। अपनी घरेलू समस्याओं का रोना रोकर वे बाॅस को इस बात के लिए मना लेती हैं कि उनकी यह ड्यूटी कोई पुरूष सहकर्मी करे जिससे पुरूष सहकर्मियों का क्षुब्ध हो कर कमेंट करना गलत नहीं, ‘आजकल औरतों का जमाना है। पुरूषों को तो अब उनके नखरे उठाने ही पड़ेंगे। उनके आगे हमारी कौन सुनता है।’
कठिनाइयों से डरकर पलायनवृत्ति
औरतों को कठिनाइयों से डरकर यह पलायनवृत्ति नहीं अपनानी चाहिए, न अपने औरत होने का नाजायज फायदा उठाना चाहिए। अगर वे अपने औरतपन का सिक्का भुनाती हैं और पुरूष के समान ही अधिकार भी चाहती हैं तो यह दुहरी चाल कामयाब नहीं हो सकती।
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