Shirdi Sai Baba : सच्चे मन से बुलाओ तो दौड़े आते हैं बाबा
If you call with a true heart, Baba comes running
Shirdi Sai Baba : शिरडी वाले बाबा के नाम से विख्यात साईं बाबा भक्तों के दुख हरने के लिए जाने जाते हैं। देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी साईं बाबा की प्रसिद्धि है। जिसने अपना सारा जीवन मानव कल्याण के लिए समर्पित किया उन्हीं का नाम है साईं। श्रद्धा और सबूरी का पाठ पढ़ाकर साईं बाबा ने लोगों को भगवान की अवधारणा का संदेश दिया।
शिरडी व अन्य जगहों में स्थित उनके मंदिरों में सभी धर्मों और जातियों के श्रद्धालु आते हैं और साईं बाबा अपना आर्शीवाद देकर सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं। साईं बाबा का असली नाम क्या था? वह कहां के मूल निवासी थे या वह कहां से आए थे. इस बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है लेकिन यह सही है कि साईं बाबा सबके हैं और सबकी सहायता करते हैं।
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द्वारका माई (About Dwaraka Mai)
कहा जाता है कि सन् 1854 में साईं बाबा शिरडी आए थे। वह दिव्य शक्ति के महात्मा थे। जब साईं बाबा शिरडी आए उस समय वह एक छोटा सा गांव था। बाद में बाबा के चमत्कार से शिरडी की ख्याति दूर.दूर तक फैलती गई जिससे शिरडी का विकास होता चला गया। साईं बाबा शिरडी में एक पुरानी मस्जिद में रहा करते थे। उनके भक्तों को उनसे मिलने यहीं आना पड़ता था। साईं बाबा ने इस मस्जिद का नाम द्वारका माई रखा था। शिरडी में कई नई इमारतें बनने के बावजूद साईं बाबा द्वारका शिरडी में ही रहना पसंद करते थे।
Shirdi Sai Baba की उदी के बारे में
साईं बाबा ने शिरडी में आने के बाद अपनी योग शक्ति से एक अग्नि जलाई थी जिसे धूनी कहा जाता है। इस धूनी में दिन-रात आग जलती रहती है। इस धूनी की राख को उदी कहा जाता है। साईं बाबा भक्तों को उदी दिया करते थेए इसी उदी से भक्तों के रोग दूर होते थे और उनके कष्टों का निवारण होता था। आज भी साईं बाबा के मंदिरों में भक्तों को यह उदी दी जाती है। साईं बाबा अंतर्यामी भी थे उन्हें अपने भक्तों पर आने वाले संकट का आभास हो जाया करता था। कई बार तो साईं बाबा अपने भक्तों के कष्ट स्वयं अपने ऊपर ले लिया करते थे।
Shirdi Sai Baba के चमत्कार
साईं बाबा स्वयं को ईश्वर का बंदा और उसका सेवक कहा करते थे। साईं बाबा के चमत्कारों में से एक घटना के अनुसार एक लोहार साईं बाबा का भक्त था। एक दिन शिरडी में धधकती धूनी की आग में साईं बाबा ने हाथ डाला और ऐसा लगा जैसे उन्होंने उसमें से कुछ निकाला हो। हाथ बाहर निकालने के बाद बाबा बोले कि यदि मैं जरा भी देर करता तो बच्ची जल जाती। इस घटना के कुछ दिन बाद शिरडी में यह जानकारी मिली कि लोहार की बेटी सच में उस वक्त आग में गिर गई थी लेकिन उसे निकाल लिया गया। उस लड़की को तो खरोंच नहीं आई लेकिन उसको बचाते हुए बाबा का हाथ जल गया था।
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एक चमत्कार यह भी प्रसिद्ध है कि शिरडी में एक नीम का पेड़ है जिसमें आधे भाग में कड़वी और आधे भाग में मीठी निबोलिया निकलती हैं। कहा जाता है कि साईं बाबा इसी नीम के पेड़ की छाव में ध्यान लगाए करते थे। सभी को बता है कि बाबा शिरडीवासियों से भिक्षा मांगा कर अपना भेट भरते थे। और जिस दिन बाबा को किसी कारण भिक्षा नहीं मिल पाता तब वे इसी नीम की कड़वी निबोलिया चबाया करते थे। लोगों का मानना है कि शायद इसलिए इसके आधे भाग में मीठी निबोलिया निकलती हैं।
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साईं बाबा शिरडी के सभी मंदिरों में रोज दिये जलाया करते थे। दिये जलाने के लिए तेल वह तेली और बनिए से मांग कर लाया करते थे। तेली और बनिए ने कुछ दिनों तक तो तेल दिया लेकिन बाद में वह कतराने लगे और आखिरकार एक दिन दोनों ने साईं बाबा को तेल देने से इंकार कर दिया इस पर साईं बाबा बिना कुछ कहे द्वारका माई लौट आए।
जिस टिन के डिब्बे में साईं बाबा तेल लाया करते थे उसमें साईं बाबा ने थोड़ा पानी डाला और वह पानी पी गए। उसके बाद बाबा ने वह डिब्बा फिर से पानी से भर दिया और फिर डिब्बे में से पानी निकालकर दीयों में डाल दिया और दीयों को जला दिया। लोगों ने देखा कि जिस तरह तेल में दिये जलते थे उसी तरह से पानी में भी जल रहे हैंए यह देखकर सब हतप्रभ हो गए।
Shirdi Sai Baba : गुरु पूर्णिमा के दिन पूजा का विशेष महत्व
गुरु पूर्णिमा के दिन साईं बाबा की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं और बाबा के दर्शन कर फल प्राप्त करते हैं। महाराष्ट्र का पंढरपुर शिरडी अब तीर्थ स्थान बन चुका है। रोज यहां भक्तजनों का तांता लगा रहता है। लंबी कतारों में भक्तजन आठ-दस घंटे खड़े रहकर भी साईं बाबा के दर्शन करते हैं। और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। बाबा के प्रति सच्ची आस्था लोगों में यहा देखने को मिल जाती है। यहां मंदिर के ट्रस्ट के द्वारा भक्तों का खास ख्याल भी रखा जाता है।
Shirdi Sai Baba : मंदिर का समय
ग्रीष्मकालीन समय
- मंदिर खुलने का समय सुबह 4:45 बजे
- काकड़ आरती सुबह 5:00 बजे
- मध्यांतर आरती दोपहर 12:00 बजे
- मंदिर बंद दोपहर 1 बजे से शाम 4:00 बजे
- धूप आरती शाम 7:00 बजे
- शेज आरती रात 8:45 बजे
- मंदिर बंद रात 9:00 बजे
शीतकालीन समय
- मंदिर खुलने का समय सुबह 5:00 बजे
- काकड़ आरती सुबह 5:30 बजे
- मध्यांतर आरती दोपहर 12:00 बजे
- मंदिर बंद दोपहर 1-4:00 बजे
- धूप आरती शाम 6:30 बजे
- शेज आरती 8:15 बजे
- मंदिर बंद रात 8:45 बजे
Shirdi Sai Baba की समाधि
कहा जाता है कि सन् 1918 में दशहरे के दिन साईं बाबा ने शिरडी में ही समाधि ली थी। साईं बाबा ने अपने भक्तों को अपने पिछले के कई जन्मों के बारे में भी बताया था साथ ही साईं बाबा ने समाधि लेते समय कहा था कि मैं सिर्फ यह शरीर छोड़कर जा रहा हूं लेकिन जब भी कोई मुझे सच्चे मन से बुलाएगाए मैं भागा चला आऊंगा।
Disclaimer : हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है। यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।