Kanwar Yatra : यहां जानें सावन माह के कांवड़ यात्रा का इतिहास, कब से शुरू हुई यात्रा और क्यों….
Know here the history of Kanwar Yatra of the month of Sawan, when did the journey start and why….
Kanwar Yatra : धर्म ग्रंथों के अनुसार मान्यता है कि एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप (Curse of Maharishi Durvasa) के कारण स्वर्ग ऐश्वर्यए धन और वैभव आदि से हीन हो गया। ऐसा होने पर सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए तब भगवान नारायण ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा जिसे ग्रहण कर तुम अमर हो जाओगे।
यह बात जब देवताओं ने असुरों के राजा बलि को बताई तो वे भी समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए। वासुकी नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र मंथन किया गया।
शिव पुराण के मुताबिक Kanwar Yatra
अगर शिव पुराण की बात करें तो उसके मुताबिक सावन के महीने में समुद्र मंथन हुआ था। मंथन के दौरान चौदह प्रकार के माणिक निकलने के साथ ही हलाहल (विष) भी निकला। सृष्टि को इस जहरीले विष से बचाने के लिए भगवान शिव ने हलाहल (विष) पी लिया। विषपान करने से उनका कंठ नीला पड़ गया था। भगवान शिव ने ये विष गले में जमा कर लिया, जिस वजह से उनके गले में तेज जलन होने लगी।
पौराणिक मान्यता है कि इसी विष के प्रकोप को कम करने और उसके प्रभाव को ठंडा करने के लिए शिव भक्त रावण ने उनका गंगाजल से अभिषेक किया था। रावण ने कांवड़ में जल भरकर बागपत स्थित पुरा महादेव में भगवान शिव का जलाभिषेक किया। इसके बाद से ही कांवड़ यात्रा का प्रचलन शुरू हुआ।
भगवान राम की कांवड़ यात्रा
वहीं आनंद रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि नारायण अवतार प्रभु श्रीराम पहले कांवड़िया थे। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम ने बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर झारखंड राज्य के देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था। उस समय सावन मास चल रहा था।
श्रवण कुमार की कांवड़ यात्रा
वहीं दूसरी ओर रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने माता-पिता के साथ पहली बार कांवड़ यात्रा की थी। श्रवण कुमार ने माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के दौरान उन्हें कावड़ में बैठकर हरिद्वार में गंगा स्नान कराया था। श्रवण कुमार द्वारा माता-पिता को कावड़ में बैठकर यात्रा कराने को ही कावड़ यात्रा माना गया है।
परशुराम जी की कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra)
हालांकि बाद में यह कावड़ यात्रा शिव पूजन और सावन माह से जुड़ गई जिसे परशुराम जी ने सर्व प्रथम निभाया। हिन्दू धर्म में कावड़ यात्रा को लेकर कई अन्य मान्यताएं भी मौजूद हैं। कुछ धर्म ग्रंथों में परशुराम के पहले कावड़िया होना वर्णित है। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का कांवड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। ‘पुरा महादेव’ प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए परशुराम भगवान गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे।
5 प्रकार की होती है कांवड़ यात्रा
सामान्य कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra)
सामान्य कांवड़ यात्रा की बात करें तो ये कांवड़िएं जहां चाहे वहां आराम कर सकते हैं। सामाजिक संगठन से जुड़े लोग ऐसे कांवड़ियों के लिए पंडाल लगाते हैं। पंडाल में भोजन और विश्राम करने के बाद दोबारा कांवड़िए अपनी यात्रा शुरू करते हैं। आराम करने के दौरान इस बात का ख्याल रखा जाता है कि कांवड़ को स्टैंड पर रखा जाए ताकि ये जमीन से न छुए।
झांकी कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra)
इस कांवड़ यात्रा की बात करें तो कुछ शिव भक्त झांकी लगाकर कांवड़ यात्रा करते हैं। ऐसे कांवड़िए 70 से 250 किलो तक की कांवड़ लेकर चलते हैं। इन झांकियों में शिवलिंग बनाने के साथ.साथ इसे लाइटों और फूलों से सजाया जाता है। इसमें बच्चों को शिव बनाकर झांकी तैयार की जाती है।
डाक कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra)
डाक कांवड़ यात्रा को थोड़ा कठिन माना जाता है क्योंकि इसे 24 घंटे में पूरी करने की पंरपरा है। इस यात्रा में कांवड़ लाने का संकल्प लेकर 10 या उससे अधिक युवाओं की टोली वाहनों में सवार गंगा घाट जाती है। यहां ये लोग दल उठाते हैं। इस यात्रा में शामिल टोली में से एक या दो सदस्य लगातार नंगे पैर गंगा जल हाथ में लेकर दौड़ते हैं। एक के थक जाने के बाद दूसरा दौड़ लगाता है। इसलिए डाक कांवड़ को सबसे मुश्किल माना जाता है।
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दंडवत कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra)
शिवभक्त कांवड़ि इस यात्रा में अपनी मनोकामना पूरा करने के लिए दंडवत कावड़ लेकर चलते हैं। वैसे तो ये यात्रा 3 से 5 किलोमीटर तक की होती है लेकिन इस दौरान शिव भक्त दंडवत ही शिवालय तक पहुंचते हैं। और गंगा जल शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।
खड़ी कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra)
शिवभक्तों के लिए यह यात्रा काफी कठिन होता है। इस कांवड़ यात्रा की खास बात ये होती है कि शिव भक्त गंगा जल उठाने से लेकर जलाभिषेक तक कांवड़ को अपने कंधे पर रखते हैं। आमतौर पर इस यात्रा में कांवड़ को शिव भक्त जोड़े में ही लाते हैं।
क्या है कांवड़ का अर्थ ?
कंधे पर गंगाजल लेकर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों पर जलाभिषेक करने की परंपरा कांवड़ यात्रा कहलाती है। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ यात्री वही गंगाजल लेकर शिवालय तक जाते हैं और शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।
कैसे बनती है कांवड़
कांवड़ बनाने में बांसए फेविकोल, कपड़े, डमरू, फूल-माला, घुंघरू, मंदिर, लोहे का बारीक तार और मजबूत धागे का प्रयोग किया जाता है। कांवड़ तैयार होने के बाद उसे फूल-माला, घंटी और घुंघरू से सजाया जाता है। इसके बाद गंगाजल का भार पिटारियों में रखा जाता है। धूप-दीप जलाकर बम भोले के जयकारों ओर भजनों के साथ कांवड़ यात्री जल भरने आते हैं और भगवान शिव को जल चढ़ाकर प्रसन्न होते हैं।
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कांवड़ यात्रियों के लिए कुछ पारंपरगत नियम
- बिना नहाए कांवड़ को नहीं छूते
- तेल, साबुन, कंघी का प्रयोग नहीं करते
- सभी कांवड़ यात्री एक-दूसरे को भोला या भोली या बम कहकर बुलाते हैं
- ध्यान रखना होता है कि कांवड़ जमीन से न छूए
- डाक कांवड़ यात्रा में शरीर से उत्सर्जन की क्रियाएं तक वर्जित होती हैं
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