Childhood Care : बच्चों में समय पूर्व मैच्योरिटी मतलब खोती मासूमियत
Premature maturity in children means losing innocence
Childhood Care : आज के समय में गुड्डे-गुडियों से खेलने की उम्र में अब बच्चे बड़ों जैसा व्यवहार करने लगे हैं। 15 साल की प्रिया को देखकर एक पल के लिए उसकी मां को बेहद हैरानी हुई। उसने अपने आप को ऐसे ड्रेस-अप किया था जैसे 20 साल की कोई युवती हो। आपको बता दें कि अक्सर बच्चे घर के बड़ों की तरह ही हकरतें करते हैं चाहे वह अच्छी हो या बुरी।
किशोरियों और छोटे बच्चों में यह व्यवहार मैच्योरिटी या ‘वुमनहुड’ (Womanhood) कहलाता है। जिस तरह वे घर के बड़ों को बात करते ड्रेसअप होते और और व्यवहार करते देखते हैं वह भी उनकी तरह करने की कोशिश में लगे रहते हैं। यहां तक कि घर में बड़े भाई.बहनों को देखकर भी उन्हीं की तरह करना चाहते हैं।
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13 साल की सोनी की बहन उससे 6 साल बड़ी है। जब भी वह अपनी बहन को ड्रेसअप होते देखती, उसके दोस्तों को देखती या उसे काम पर जाते देखती, वह भी उसी की तरह बनना चाहती। उसे यह सब बेहद आकर्षक लगता था। जबकि सोनी अभी सिर्फ 13 साल की है। बच्चे अगर बड़ों की तरह व्यवहार करें, तो यह अच्छी बात है पर इसका मतलब यह नहीं कि अपना बचपन ही भूल जाएं। यह बात उनके भविष्य को प्रभावित कर सकती है।
10 से 18 साल की उम्र बेहद नाजुक
विशेषज्ञों की मानें, तो किसी भी बच्चे या किशोर के लिए 10 से 18 साल की उम्र बेहद नाजुक होती है। यह वह अवस्था होती हैए जब बच्चा अच्छे बुरे की पहचान करता है। अगर बच्चा समय से पहले मैच्योर व्यवहार करेगा तो उसका बचपना और मासूमियत दोनों ही खत्म हो जाएगी।
समय से पहले मैच्योर (Premature Maturity)
जब बच्चा समय से पहले मैच्योर की तरह बर्ताव करने लगता है, तो बड़े होने के बाद उसके मन में यह टीस रह जाती है कि उसने अपना बचपन एंजॉय नहीं किया। कहीं पारिवारिक दबाव तो कहीं विपरीत स्थिति के कारण बच्चों में मैच्योर व्यवहार स्वाभाविक है।
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बच्चों का बचपन (Childrens Childhood)
पहले जहां संयुक्त परिवार में बच्चों का बचपन सुरक्षित रहता है, वहीं अब एकल परिवारए मीडियाए गैजेट्स सबने मिलकर बचपन छीन लिया है। जब बच्चों का बचपन छिनता है तो बड़े होने के बाद दूसरे बच्चों को देख उन्हें यह महसूस होता है कि उन्होंने अपना बचपन खोया है।
गैजेट्स ने भी छीना बचपन (Gadgets took away Childhood)
कई बच्चों के माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे छोटी उम्र में ही बड़ों जैसे व्यवहार करें। जबकि ऐसी उम्र में बड़ों जैसा व्यवहार कैसे करना है बच्चे यह समझ नहीं पाते। आज कम्प्यूटर, आईपैड और मोबाइल जैसे गैजेट्स ने भी बच्चों से उनका बचपन चुरा लिया है। बाहर शोर मचाकर खेलने वाले बच्चे और किशोर आज मोबाइल और कम्प्यूटर में खो गए हैं।
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बचपन के खेलों में रुचि नहीं (No interest in Childhood Games)
उन्हें बचपन के खेलों में भी कोई रूचि नहीं रह गई है। ऊपर से माता-पिता और आस-पास के लोगों की उम्मीदें भी उन पर ज्यादा हावी हो गई है। कुछ बच्चे घर की मजबूरी और आर्थिक दबाव में बड़े हो जाते हैं। गिल्ली डंडे से खेलना या कंचे से खेलना सब भूल गए।
समय से पहले बचपन छीनना (Snatching Childhood)
अपना बचपन हर बच्चे को प्यारा होता है। भागदौड़, खेलकूद, शैतानी यह सब बचपन की शरारतें हैं जो जीवन में दोबारा नहीं मिलती। जब बच्चा बड़ा होता है तो यह उसके लिए मीठी यादें बन जाती हैं। हर बच्चे को एक दिन बड़ा होना ही है फिर समय से पहले उनका बचपन छीनना कहीं से भी न्याय संगत नहीं है। उन्हें बचपन की मीठी यादों और प्यार-दुलार के साथ बड़ा होनें दें।
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