Best Places to Visit : ऐतिहासिक तीर्थ नगरी है अमृतसर
Best Places to Visit: Amritsar is a historical pilgrimage city
Best Places to visit in Amritsar : भारत के उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तानी सीमा के निकट स्थित अमृतसर भारतीय सभ्यता और संस्कृति तथा इतिहास की जीती-जागती तस्वीर है। वीरता और शौर्य के अप्रतिम उदाहरण, कम ही मिलते हैं जिसकी अमृतसर के दिलवाले भारतीयों ने मिसाल पेश की।
सिक्ख बंधुओं का यह शहर हिन्दू धर्म के सनातन एवम् सिक्ख पंथ के भाईचारे की जाती-जागती मिसाल है। सिक्ख बंधुओं के लिए यह शहर मुस्लिम भाईयों के मक्का-मदीना के समान है। प्रथम विश्व युद्ध को केन्द्र बिन्दु रखकर अमर कथाकार चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने सन् 1915 में हिन्दी की महानतम कहानी ’उसने कहा था‘ लिखी थी। श्री गुलेरी जी ने अमृतसर शहर का जो सांगोपांग वर्णन ’उसने कहा था‘ में किया है, वह अन्यत्रा दुर्लभ है।
दिलफेंक तांगे-रिक्शे वाले, साइकिल चालक, गाड़े चलाने वाले, राह चलते राहगीर, पंजाबी भाषा का उच्चरित होता सुस्वाद आम रास्ते की रेलमपेल, यह सब अमृतसर का प्रथम विश्व युद्ध के समय का दृश्य रहा है। आलेख लेखक ने अमृतसर शहर को दो बार नजदीक से देखा है। लेखक ने यह पाया कि निश्चित रूप से यह दिलवालों का शहर है। वही रिक्शा, वही तांगों की सरपट, सामान ढोते गाड़े वाले, पंजाबी भाषा में अपनी व्यस्तता व्यक्त करते टैम्पो वाले, पैदल चलने वालों का जमघट, भीड़-भाड़ भरी जिन्दगी जो सरपट दौड़ती नजर आती है।
महानतीर्थ नगरी होने के साथ-साथ अमृतसर ऐतिहासिक वजूद भी रखता है। इस शहर को सिक्खों के चैथे गुरू रामदास ने बसाया था। बाद में उसको अमली जामा उनके पुत्रा अर्जुनदेव ने पहनाया। 1579 में स्थापित यह शहर अपने पवित्रा तालाब, पवित्रा स्वर्ण मंदिर के कारण विश्व प्रसिद्ध है। शताब्दियों पुराने इस शहर का पुराना जलवा अब बदल गया है। पहले शहर में 18 द्वार थे मगर अब यह शहर नये व पुराने दो भागों में विभाजित बनावट व बसावट की दृष्टि से है। इस शहर का ओर-छोर देखने के लिये काफी घूमना पड़ता है। पर्यटक की दृष्टि से यह शहर उत्तम सैरगाह है।
अमृतसर के दर्शनीय स्थल (Best Places to visit in Amritsar)
स्वर्ण मंदिर (Best Places to visit-Golden Temple) :-
सिक्खों का यह सबसे अधिक वंदनीय स्थान है। यह सोने के मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। वैसे तो भारत के अनेक मंदिरों में सोने का कार्य देखा जा सकता है लेकिन जितना सोना इस मंदिर में लगा है, उतना शायद ही किसी अन्य मंदिर में लगा होगा। लगभग 400 किग्रा. सोना इस मंदिर को चमचमाने में खर्च हुआ है।
जब हम मंदिर के निकट पहुंच कर उसको निहारते हैं तो उसकी सुनहरी आभा आंखों को भौंचक्का कर देती है। सूर्य की रश्मियां मंदिर के सुनहरे रूप को बहुत दूर तक कान्तिमय कर देती हैं, वहीं संध्या की आभा सुनहरी पात को और भी निखरे हुए रूप में प्रस्तुत करती है। सन् 1601 में गुरू अर्जुनदेव जी ने पवित्रा अमृत सरोवर के मध्य मंदिर का निर्माण करवाया।
इस मंदिर में पवित्रा गुरू ग्रंथ साहब विराजमान हैं जिनके दर्शनों से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते है। पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर में संगमरमर, तांबा तथा सोने का कार्य करवाया। उन्होंने ही इसे स्वर्णिम आभा का रूप दिया। मंदिर तक पहुंचने के लिए साठ मीटर लम्बा पुल बना हुआ है। इस पुल के किनारे को दर्शनी ड्योढ़ी कहते हैं। लगभग बावन मीटर ऊंचा हरि मंदिर वर्गाकार है। इसमें चारों दिशाओं में चार द्वार हैं।
तीन मंजिल के इस स्वर्ण मंदिर की निर्माण कला अद्वितीय है। रंग-बिरंगे झाड़-फानूसों की अपनी अलग ही शोभा है जिससे दर्शक आकर्षित हो जाते है। मंदिर की पहली मंजिल में गुरू ग्रंथ साहिब विराजमान हैं जिसके ऊपर रत्न जड़ित छत्रा है।
मंदिर परिसर में सवेरे तीन बजे से रात के दस बजे तक गुरू ग्रंथ साहब का अखण्ड पाठ होता है। पाठ की समाप्ति पर रात्रि में 10 बजे गुरू ग्रंथ साहब को सम्मानपूर्वक कोठा साहब नामक पवित्रा स्थान पर ले जाकर प्रतिष्ठित किया जाता है। इसके पश्चात हरि मंदिर साहिब की सफाई कर इसे दूध से धोया जाता है तथा ठीक प्रकार से पोंछ कर चांदनी आदि बिछा दी जाती है।
प्रातःकाल तीन बजे से पाठ आरंभ हो जाता है। प्रातःकाल चार बजे कोठा साहिब से रणसिंघों के वादन व भक्ति संगीत के साथ ससम्मान पालकी में हरि मंदिर साहिब लाकर गुरू ग्रंथ साहब को पवित्रा आसन पर स्थापित किया जाता है। मंदिर परिसर में जूते पहन कर जाना मना है। भक्तगणों को सिर ढांपकर जाना पड़ता है। मंदिर परिसर में सेवा का कार्य अत्यन्त प्रशंसनीय है। जल पिलाने सहित लंगर इत्यादि में सेवा करने वालों का उत्साह देखते ही बनता है।
जलियांवाला बाग (Best Places to visit-Jallianwala Bagh) :-
13 अप्रैल 1919 को रौलट एक्ट के विरोध में वैशाखी के पवित्रा पर्व पर एक आम सभा हो रही थी जिसका नेतृत्व सरदार उधमसिंह कर रहे थे। सभा में लगभग चार-पांच हजार लोग उपस्थित थे। बिना किसी सूचना के जनरल डायर ने शांतिपूर्वक हो रही सभा में निहत्थों पर बर्बरतापूर्वक अंधाधुंध गोलियां चला दी।
उस समय पार्क में घुसने का एक ही रास्ता था। उसी को अंग्रेज सैनिकों को ने रोक लिया था। सभा में उपस्थित जनसमुदाय द्वारा दीवारें फांद कर दूसरी तरफ से भागने का प्रयत्न किया गया मगर वे सफल नहीं हुए। बाग में उस समय एक कुंआ था जो आज भी स्मारक के रूप में विद्यमान है। उस कुएं में लोग जिन्दा कूद गये थे। जान बचाने का यह अनूठा उपक्रम था मगर सब बेकार। शहीदों की सूची दो हजार तक पहुंची। शेष घायलों में थे।
ऐसा लोमहर्षक हत्याकाण्ड बीसवीं शताब्दी के इतिहास में काला अध्याय है। इस जलियांवाला बाग को शहीदों की स्मृति के रूप में आज संजोकर रखा हुआ है। बगीचे में कुएं को स्मारक का रूप देते हुए दर्शकों के देखने हेतु सुरक्षित रखा हुआ है। उस समय की बड़ी-बड़ी गोलियों के निशान आज भी देखे जा सकते हैं जिन्हें भी सुरक्षित रूप से सहेजकर रखा गया है। यह बाग अवश्य ही देखने लायक है।
वाघा बॉर्डर (Best Places to visit-Wagah Border) :-
भारत पाकिस्तान का यह सीमावर्ती स्थान है जो ध्वजारोहण कार्यक्रम के लिए प्रसिद्ध है। शहर से लगभग 32 किमी. दूर इस सीमावर्ती चैकी पर संध्या के समय लोगों का हुजूम देखते ही बनता है। बहुत लम्बी कतार पुरूषों की तथा उसी प्रकार से महिलाओं की लंबी कतार, ध्वजा रोहण के कार्यक्रम को देखने हेतु समय से घण्टे भर पूर्व ही लग जाती है।
तेज धूप हो या ठंड पर पर्यटकों को परवाह नहीं। बी एस एफ के नौजवान कड़ी जांच के बाद एक-एक को आगे बढ़ने देते हैं। स्टेडियमनुमा यह चैकी चारो ओर से दर्शकों से खचाखच भर जाती है। लोग पंजों के बल खड़े होकर उस अभूतपूर्व दृश्य को देखने के लिए उतावले बने रहते है जो संध्या के तट पर होने वाला होता है।
जयकारों और देशभक्ति के गीतों के बीच यह दृश्य देखने लायक होता है। सीमा पर लोहे के दो गेट है जिसमें पहले वाला भारत का तथा बाद वाला पाकिस्तान का सीमा सुरक्षा बल के जवान भारी-भरकम लोहे के दरवाजों को संध्या के अवसर पर खोलते हैं। दोनों तरफ के जवान अपने-अपने ध्वज फहराते हैं। देशभक्ति का ऐसा नजारा देखने लायक होता है।
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दुर्ग्याणा मंदिर (Best Places to visit-Durgiana Temple) :-
स्वर्ण मंदिर की तर्ज पर बना यह मंदिर विशाल परिसर में स्थित है। मंदिर परिसर में लम्बा-चैड़ा सरोवर स्थित है तथा उसके आजु-बाजू में अनेक मंदिर है। मां दुर्गा को समर्पित यह मंदिर सोने के कार्य के लिए भी जाना जाता है। मंदिर समय में भक्ति संगीत की सुर लहरियां चलती रहती है यहां भी भक्तों का भारी जमावड़ा रहता है।
अमृतसर रेल तथा सड़क मार्ग द्वारा देश से सीधा जुड़ा हुआ है। अचार, मुरब्बा, आम पापड़, लस्सी, बड़ीयों के स्वाद का यह शहर पर्यटकों को रोमांचित कर देता है।
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