Tonsil Care Tips : गले की समस्या को हल्के में लेना पड़ सकता है महंगा

Tonsil Care Tips : कभी-कभी हम गले की खराश को हल्के में लेकर इसकी अनदेखी कर देते है। मन में यही आता है कि कुछ ठंडा खाया होगा इसलिए खराश हो गया। पर आप इस तरह की गलती न करें। बार-बार या कई दिनों तक यह समस्या हो रही है तो आप सावधान हो जाए। अगर खाना खाते या पानी पीते वक्त गले में अटकने जैसा एहसास हो रहा हो तो समझ लें आप टांसिल की समस्या से ग्रसित हो सकते है। आईये टांसिल की समस्या के बारे में विस्तारपूर्वक जानते हैं।
शरीर के अन्य अंगों की तरह गला हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह हमारे लिए महत्व इसलिए रखता है क्योंकि शरीर के भीतर पहुंचने वाले खाद्य−पदार्थ तथा हवा−पानी के प्रवेश का दायित्व इसी पर है। इसी महत्वपूर्ण कार्य को निभाने के कारण यही हिस्सा हमारे द्वारा ग्रहण किये जाने वाले भोजन, जल तथा वायु में उपस्थित किसी भी जहरीले तत्व से सबसे पहले प्रभावित होता है। नाक और कान भी इससे अछूते नहीं रहते।
हालांकि बाहरी रूप से देखने से हमारे नाक, गला व कान अलग−अलग दिखाई देते हैं परन्तु गले के भीतर जाकर इन तीनों अंगों की कोशिकाएं आपस में मिल जाती हैं। इस कारण इन तीनों अंगों में से किसी एक भी अंग में किसी प्रकार का संक्रमण हो जाता है तो उसका प्रभाव तीनों अंगों पर पड़ता है। इस कारण जरूरी है कि कोई भी संक्रमण होते ही जल्दी से उसका उपचार किया जाए।
Read Also = Health Tips: जानें मदिरा व धूम्रपान से ज्यादा खतरनाक क्या है ?
बाहरी वातावरण में उपस्थित किसी भी जहरीले तत्व के संक्रमण से इन अंगों को बचाने के लिए प्रकृति ने मुख तथा गले की संरचना इस प्रकार की है कि उन जहरीले तत्वों को हमारे मुंह के अंदरूनी तंत्र पर कोई प्रभाव न पड़े। बाहरी रूप में देखने पर नाक व मुख एक सम्पूर्ण अंग के रूप में ही दिखाई देते हैं, उनके अलग−अलग हिस्से दिखाई नहीं देते।
परन्तु वास्तव में यह अंग कई हिस्सों में बंटे होते हैं। हालांकि निटलकैविटी मारेटेज और नेटलचेप्टर देखने में तो अलग−अलग दिखाई देते हैं परन्तु पीछे जाकर गले की अंदर आपस में एक कैविटी में मिल जाते हैं जिसे ओरोफेरिंगल्स कहते हैं ओरोफेरिगल्स के ऊपर नाक के पीछे के भाग को लेजोफेरिग्ंल्स कहते हैं।
Contents
प्रदूषण से भी हो सकता है Tonsil की समस्या
टांसिल की समस्या का कारण किसी भी प्रकार का प्रदूषण या इन्फेक्शन हो सकता है जो हमारे शरीर में मुख व नाक से प्रवेश कर रहा हो। ये प्रदूषण या इन्फेक्शन वायरल या बैक्टीरियल किसी भी प्रकार के प्रदूषक से दूषित हवा सांस के माध्यम से जब शरीर में प्रवेश कर जाती है तो यह तुरंत समस्या पैदा कर सकती है। ऐसे स्थान जहां के वातावरण में बदबूए सीलन तथा अन्य किसी रासायनिक तत्व का समावेश हो ऐसे स्थानों में वायु के द्वारा निरन्तर जहरीले तत्वों के सम्पर्क में आने के कारण टांसिल रोग की समस्या खड़ी हो सकती है।
बच्चों में Tonsil रोग के मामले ज्यादा
बच्चों में इस रोग के ज्यादा मामले दृष्टिगत होते हैं क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। ऐसा नहीं कि बड़ी उम्र के लोग इससे ग्रसित नहीं हो सकते उनमें भी यह समस्या देखी जा सकती है। टांसिलाइटिस इस रोग की एक खतरनाक अवस्था होती है क्योंकि शरीर में एन्टीबाडीज होने के कारण प्रतिक्रिया होती रहती है।
इस अवस्था में जैसे ही एंटीजन हमारे शरीर में प्रवेश करता है वैसे ही टांसिल टिश्यू उससे लड़ना शुरू कर देते हैं इससे जो एंटीजन बनता है वह शरीर के अन्य भागों में उपस्थित प्रोटीन के साथ प्रतिक्रिया करके वहां भी इसी प्रकार के एंटीबाडीज बना देता है। इन एंटीबाडीज का दिल के वॉल्व पर सीधा प्रभाव पड़ता है तथा दिल के वॉल्व खराब होने का खतरा पैदा हो जाता है।
Read Also =Health Tips : जूठा खाने से भी उत्पन्न होती है बीमारियां

टांसिल तो ज्यादातर बच्चों को होता है परन्तु इसका दिल पर पड़ने वाला दुष्प्रभाव किसी भी उम्र में पड़ सकता है। बचपन में गले के संक्रमण का उचित उपचार न होना भी हमारे देश में दिल की बीमारियों का एक कारण है। इसके अतिरिक्त टांसिल से बैराफेंगिल्स एपशिशए न्यूट्राफरिंग्ल्स एपाशीश जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं।
टांसिल की समस्या के लक्षण (Symptoms of Tonsil Problem)
- गले में दर्द और खराश
- गले से लेकर कानों तक दर्द होना
- निगलने में दिक्कत होना
- बुखार आना
- आवाज़ प्रभावित होना
- गले में दर्द के साथ सिरदर्द होना
- टॉन्सिल्स में दर्द होना और गला सूज जाना
- छोटे बच्चों में इसके कारण पेट में दर्द जैसे लक्षण भी होते हैं।
- गर्दन में दर्द
शरीर की यांत्रिक संरचना में विषैले तत्वों को गड़बड़ी के कारण पैदा होने वाली इस समस्या की पहचान कुछ प्रारंभिक लक्षण देखकर की जा सकती है जैसे− बार−बार गला खराब होनाए गले में सूजन होनाए दर्द होनाए बार−बार बुखार आना आदि। यदि ऐसे ही लक्षण रोगी को बार−बार हो रहे हों। जैसे एक वर्ष में पांच या छह बार तो उसे टांसिल का आपरेशन करवा लेना चाहिए। लेजर आपरेशन में दो से तीन घंटे का समय लगता है और बिल्कुल चीर−फाड़ नहीं होती।
टांसिल से बचाव कैसे करें (How to prevent tonsils)
टांसिल से बचाव के लिए जरूरी है कि बच्चों को संतुलित भोजन दिया जाए ताकि उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो। सबसे जरूरी तो यह है कि टांसिल के लक्षण दिखते ही तुरंत डाक्टर से सम्पर्क करें। डाक्टर द्वारा दिए गए दवाई के कोर्स को पूरा करना चाहिए। अक्सर लोग थोड़ा सा आराम मिलते ही दवाई बंद कर देते हैं परंतु ऐसा करना रोग को और अधिक उग्र बना देता है।
Read Also = 9 Healthy Vegetable : सब्जियां जरूरी हैं स्वास्थ्य के लिए
इस रोग के दौरान रोगी को खाना−पानी निगलने में तकलीफ होती है। ऐसे में बहुत से लोग कम खाते हैंए यह ठीक नहीं है। रोगी के शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति नरम या तरल खाद्य पदार्थ देकर की जारी चाहिए। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है।
टॉन्सिल के प्रकार
- एक्यूट टॉन्सिल
- रिकरेंट टॉन्सिल
- क्रोनिक टॉन्सिल
- पेरिटॉन्सिलर एब्सेस
टॉन्सिलाइटिस के दौरान क्या न करें?
टॉन्सिलाइटिस के दौरान कुछ चीजों से परहेज करना जरूरी है। जैसे कि ठंडी चीजें, जैसे आइसक्रीम और ठंडा पानी, इनका सेवन नहीं करना चाहिए। तली-भुनी और मसालेदार खाद्य पदार्थ भी टॉन्सिलाइटिस को बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा, फास्ट फूड, जंक फूड, चॉकलेट और टॉफी से भी दूर रहना चाहिए। टॉन्सिलाइटिस की स्थिति में शराब, गुटखा और धूम्रपान से परेशानी और बढ़ जाती है, इसलिए किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों से बचना चाहिए।
Disclaimer : इस लेख में दिए गए सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।
Click Here : Join WhatsApp Group | Like Facebook Page