Urbanisation in India : समझे शहरीकरण के खतरे को
Urbanization in India: Understand the danger of urbanization
Urbanisation in India : हमारा देश कभी ग्रामों का देश था। हमारी संस्कृति कृषि पर आधारित थी। लघु और ग्रामीण उद्योगों का बोल बाला था। स्वदेशी वस्तुओं पर कला कृतियां छाई रहती थी जो विविधता में एकता का एक सुन्दर उदाहरण था। हमारे देश के ऋषि मुनियों ने ग्रामीण संस्कृति को सरलता में ढाला। हमारा रहन सहन भी सरल था।
सादा जीवन उच्च विचार हमारा आदर्श था। शहरी चकाचैंध और दिखावे से हम बहुत दूर थे। हमारे देश में शहर थे पर गिने चुने। उनकी आर्थिक व्यवस्था भी ग्रामों पर निर्भर थी, इसलिए वहां भी सरलता के दृश्य दिखाई देते थे।
क्या हमारे देश के ऋषि-मुनि बड़े शानदार शहरों के संबंध में जानकारी नहीं रखते थे ? क्या वे विकास की अवधारणा से अपरिचित थे? ये ऐसे प्रश्न हैं जो आज पूछे जाने चाहिएं। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसका उत्तर दिया ’नहीं‘ वे जानते थे शहरी सभ्यता पर वे शहरी सभ्यता के खतरे भी जानते थे। शहरी सभ्यता शोषण की एक ऐसी मशीन बन जाएगी तो मनुष्यता का कचूमर निकाल देगी। गरीब को भिखारी बना देगी, भिखारी को चोर-लुटेरा बना देगी या आत्महत्या को प्रेरित करेगी।‘ आज यही हो रहा है।‘
भारत में हम लोकतंत्र का दावा कर रहे हैं, विकास के नाम पर शहरों का विस्तार कर रहे हैं। आज तक हजारों ग्राम शहरों में सम्मिलित कर लिए गए हैं। नित नए विकास के फन्दे ग्रामीण इलाकों को जकड़ रहे हैं। ग्रामवासी अपने ग्रामों की बदहाली देख प्रगति स्वप्न सजाए शहरों में पहुंच रहे हैं।
शहरों में भीड़ ही भीड़ (Urbanisation in India)
शहरों में भीड़ ही भीड़ है। झुग्गी झोपड़ी बस रही है, गन्दगी का साम्राज्य बढ़ रहा है और शहरी जीवन इस भीड़ को संभाल नहीं पा रहा। मुम्बई का उदाहरण हमारे सामने है जहां मांग की जा रही है कि बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगाई जाए। ग्राम ही नहीं कस्बों से भी लोग भागकर शहरों में आ रहे हैं।
यह तो एक पक्ष हुआ। बड़े शहर छोटे शहरों को विकास नहीं करने दे रहे। वे सारे बुनियादी संसाधन अपने यहां खींच रहे हैं। बड़े शहरों की राजनीतिक सत्ता इसमें उनकी मदद कर रही है। बड़े शहर गुब्बारे की तरह फूल रहे हैं, सुरसा के मुंह की तरह फैल रहे हैं और शहरों की व्यवस्था बाहर से कैसी दिखती हो किन्तु अन्दर से उसमें हाहाकार ही सुनाई देता है। हमारे शहर आज जितने अराजक हैं, उतने पहले कभी नहीं रहे।
शहरों की हालत (Urbanisation in India)
आज शहरों की हालत यह है कि यहां प्रतिदिन बलात्कार, शीलभंग, अपहरण, हत्याएं हो रही हैं। कोई डर नहीं है किसी को, किसी का। पुलिस प्रशासन पस्त है। विशाल नगरी की जनसंख्या के सामने वह पंगु है। कोई किसी को नहीं जानता। अपराधों का ग्राफ बढ़ता जाता है। राजनीतिक हस्तक्षेप का वरदहस्त अपराधियों के स्तर पर रहता ही है। हमारी राजनीति भी तो अपराधी बनती जा रही है।
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आवागमन अस्त व्यस्त
आवागमन अस्त व्यस्त है। हजारों कारें, बाइक सड़कों पर दौड़ रही हैं किन्तु सड़क पर जगह नहीं है। जाम लग रहे हैं। इतने वाहनों के लिए खुली सड़कें नहीं हैं। वाहनों को रखने के लिए जगह नहीं है। बाजार हैं किन्तु बाजार तक पहुंच नहीं है एक बड़ी मजेदार बात है, सड़के हैं किंतु फुटपाथ का पता नहीं है। बिना फुटपाथ के पैदल चलना दुश्वार हो रहा है। सड़क दुर्घटनाओं में पैदल चलने वाले सबसे ज्यादा मर रहे हैं, घायल हो रहे हैं, सबसे गरीब पैदल चलने वालों के लिए योजनाओं में कोई स्थान नहीं है।
शहरों का फैलाव इतना है कि कोई गरीब मध्यमवर्गीय व्यक्ति तो शहरी सुविधाओं का लाभ उठा ही नहीं पा रहा क्योंकि पर्याप्त सार्वजनिक आवागमन के साधन ही नहीं हैं। जो हैं उनमें भीड़ भाड़ और उदासीनता का आलम है। अतः घन्टों थका देनी वाली यात्रा आदमी को तोड़ देती है।
शिक्षा पूर्णतः बिकाऊ (Urbanisation in India)
शिक्षा के बड़े-बड़े विद्यालय विश्व विद्यालय भी बड़े शहरों में हैं किंतु शिक्षा पूर्णतः बिकाऊ है। इतनी महंगी शिक्षा है कि गरीब तो उच्च शिक्षा के चैखट पर पहुंच ही नहीं सकता। यही हाल स्वास्थ्य के हैं। बड़े-बड़े अस्पताल हैं आधुनिक संसाधन हैं, किन्तु गरीब व मध्यमवर्गीय वर्ग की पहुंच के बाहर है, यह सब।
परिणाम
हम देख रहे हैं कृषक, विद्यार्थी, कर्मचारी, महिलाएं, बच्चे तक आत्महत्या कर रहे हैं। गरीबों को भिखारी बनना पड़ रहा है, युवा बेरोजगार हो रहे हैं। अमीर और अमीर हो रहे हैं करोड़पतियों की नहीं, अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है और इसे हम विकास कहते हैं। शहरीकरण के कारण ही आतंकवाद विस्तार पा रहा है। हम आतंकी को भीड़ में पहचान ही नहीं पा रहे।
शहरीकरण के इन खतरों को हमारे ऋषि-मुनि जानते-समझते थे और इसलिए उन्होंने ग्राम-संस्कृति को ही स्वीकार किया। महात्मा गांधी इसीलिए ग्राम स्वराज के पक्षधर रहे किंतु हमारे राजनेता अमेरिकन चश्मा चढ़ाए विकास की आधुनिक अवधारणा का राग अलापते इस अंधे कूप में जा गिरने को आतुर हो गए।
Compromise Tips : सीखें समझौता करना
आज की आवश्यकता
आज की आवश्यकता यह है कि हम ग्राम क्षेत्रा का विकास ढांचा तैयार करें ताकि ग्रामीण अपने ग्राम में ही वे सब सुविधाएं पाएं जो शहरों में उपलब्ध हैं। ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा दें। ग्रामीण उद्योग के कारीगर पिछड़े जाति के हजारों कारीगरों के लिए रोजगार देते हैं। आधुनिकता की अंधी दौड़ में वे बेरोजगार हो कलाकार और उद्यमी से मजदूर बन गए हैं।
गांधी जी की कल्पना के भारत में सबसे कमजोर, सबसे पिछड़े व्यक्ति के लिए योजना बनती थी किन्तु हम पूंजीवादी चक्र में फंस गए हैं। हम भूल गए हैं कि पैदल चलने वाले भी भारत के नागरिक हैं।
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