No Non-Veg Day : जानें कौन थे साधु टीएल वासवानी जिसके कारण यूपी में हुई ‘नो नॉन-वेज डे’ की घोषणा
In Uttar Pradesh, not a single meat shop will open in the entire state on 25th November
No Non-Veg Day in UP : साधु टीएल वासवानी की जयंती (Sadhu TL Vaswani Birth Anniversary) को अहिंसा दिवस के रूप में मनाने के लिए उत्तर प्रदेश में 25 नवंबर को नो नॉन-वेज डे की घोषणा योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा की गई है। कहने मतलब यह है कि उत्तर प्रदेश में शनिवार यानि 25 नवंबर को पूरे प्रदेश में एक भी मांस की दुकान नहीं खुलेगी (In Uttar Pradesh, not a single meat shop will open in the entire state on Saturday i.e. 25th November)। एक पत्र के जरिये सभी जिलों को राज्य सरकार ने इसकी सूचना भेज दी है। इस पत्र में आदेश का पालन हर हाल में कराने के लिए कहा गया है।
नो नॉन-वेज डे (No Non-Veg Day)
धर्मेंद्र प्रताप सिंह (विशेष सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार) द्वारा जारी की गई अधिसूचना के अनुसार, प्रदेश के महापुरुषों एवं अहिंसा के सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले विभिन्न युग पुरुषों के जन्म दिवसों और कुछ प्रमुख धार्मिक पर्वों को अभय अथवा अहिंसा दिवस के रूप में मनाए जाने के उद्देश्य से स्थानीय निकायों में स्थित पशुवधशालाओं एवं गोश्त की दुकानों को बंद रखा जाएगा।
जारी की गई अधिसूचना के अनुसार बुद्ध जयंती, गांधी जयंती, महावीर जयंती एवं शिवरात्रि के महापर्व की तरह साधु टीएल वासवानी के जन्मदिन 25 नवंबर 2023 को मांस रहित दिवस घोषित करते हुए प्रदेश की समस्त नगर स्थानीय निकायों में मांस की दुकानों को बंद रखे जाने का निर्णय लिया गया है।
कौन थे साधु वासवानी (Who was Sadhu Vaswani)
साधु टीएल वासवानी का पूरा नाम है थांवरदास लीलाराम वासवानी। साधु वासवानी देश के प्रमुख शिक्षाविद और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। लोग उन्हें साधु वासवानी कहकर पुकारते थेए जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए मीरा आंदोलन चलाया था।
Sadhu Vaswani का जन्म स्थान व शिक्षा
टीएल वासवानी का जन्म हैदराबाद रियासत के सिंध इलाके में 25 नवंबर 1879 को हुआ था। साल 1899 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी से बीए और 1902 में एमए की डिग्री हासिल की थी। इसके बाद वे कोलकाता के सिटी कॉलेज में इतिहास और दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बनेए जहां से वे 5 साल बाद लाहौर के डीजे साइंस कॉलेज में अंग्रेजी और दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बनकर चले गए थे। पढ़ाने के साथ ही वह मानवता की सेवा में भी जुटे रहे और देश-विदेश में बहुत सारी जगह उन्होंने जीव हत्या के खिलाफ लोगों को जागरूक किया।
40 साल की उम्र में बन गए थे संन्यासी
40 साल की उम्र में मां के निधन के बाद वे पूर्णरूप से संन्यासी बन गए थे। अलग पाकिस्तान बनने के बाद भी वे लाहौर में ही रहेए लेकिन 1949 में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के निधन के दो दिन बाद उनकी साप्ताहिक मीटिंग में हर बार की तरह प्रसाद बांटने पर विवाद पैदा हो गया।
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साधु वासवानी मिशन की स्थापना (Sadhu Vaswani Mission)
प्रसाद बांटने पर मुस्लिम समुदाय ने उन पर जिन्ना की मौत का जश्न मनाने का आरोप लगाया। इससे दुखी होकर वे भारत चले आए और पुणे में साधु वासवानी मिशन की स्थापना की थी। साधु वासवानी मिशन जीव हत्या के खिलाफ लोगों को जागरूक करता था। टीएल वासवानी जीव हत्या बंद कराने के लिए जान तक देने को तैयार थे। उनका निधन 16 जनवरी. 1966 को पुणे में ही हुआ था। उनके ऊपर भारत सरकार एक डाक टिकट भी जारी कर चुकी है।