Malaria : जानें मलेरिया पैरासाइट की खोज कब और कैसे की गई

Malaria: Know when and how malaria parasite was discovered

Malaria : जानें मलेरिया पैरासाइट की खोज कब और कैसे की गई

Malaria : सर्वप्रथम सन् 1880 में डाॅक्टर चाल्र्स लैबेरन (Doctor Charles Laberon) ने मलेरिया पैरासाइट (Malaria Parasite) का पता लगाया था। वे फ्रांसीसी सेना में पदस्थ थे। युद्ध के दौरान एक बार उनकी सेना अल्जीयर्स में ठहरी थी। वहां जब वे बीमार सैनिकों का रक्त परीक्षण कर रहे थे, तब उन्होंने उनके रक्त में सूक्ष्म प्रोटोजोआ को देखा। ये रोगाणु रक्त की लाल रूधिर कणिकाओं में पाये गये थे। इससे पूर्व किसी अन्य वैज्ञानिक ने इन्हें नहीं देखा था।

लैवेरन ने इन बीमार सैनिकों का रक्त सुई के द्वारा स्वस्थ सैनिकों के शरीर में पहुंचाया तो उन्हें भी बुखार आ गया। यह मलेरिया बुखार था। वे इस बात का पता न लगा सके कि मलेरिया का कारण क्या है लेकिन उन्होंने इतना अवश्य सिद्ध कर दिया कि मलेरिया मनुष्य का खून चूसने वाले किसी कीड़े द्वारा ही फैलता है। गौल्जी एवं केल्ली नामक वैज्ञानिकों ने इस पर पुनः प्रयोग किये एवं ज्ञात किया कि यह रोग मच्छरों से फैलता है। उस क्षेत्रा में उस समय मच्छर एवं मलेरिया रोग साथ-साथ ही फैल रहे थे।

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एक अन्य वैज्ञानिक पैट्रिक मानसन ने मादा मच्छरों के ऊतकों में फाइलेरिया परजीवी के भू्रणों को मिलाने पर यह निष्कर्ष निकाला कि मच्छरों के काटने के बाद ही मलेरिया होता है। सन् 1894 में पैट्रिक मानसन ने लंदन में रोनैल्ड रौस से मुलाकात के दौरान उन्हें मच्छरों में मलेरिया पैरासाइट के जीवन चक्र का अनुसंधान करने का सुझाव दिया।

Malaria Parasite के ऊसाइट्स

रोनेल्ड रौस को दो वर्षों तक अथक परिश्रम करने के बाद 29 अगस्त 1897 में एनोफिलीज मच्छरों के ऊतक में मलेरिया पैरासाइट के ऊसाइट्स मिले। रौस ने एक हजार से अधिक मच्छरों का परीक्षण किया और ऐसी विधि की खोज की जिससे मलेरिया पैरासाइट एवं मादा एनोफिलीज में संबंध स्थापित हो गया। बाद में रौस ने पक्षियों में मलेरिया फैलाने वाले पैरासाइट के जीवन-वृत्त की समस्या का हल निकाला। रौस ने इस प्रकार प्लाज्मोडियम प्रकोक्स का पूर्ण विकास तथा उसका जीवन चक्र और एक पक्षी से दूसरे पक्षी तक उसके पहुंचने की प्रक्रिया को समझाया।

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Malaria का सम्पूर्ण जीवन चक्र

मलेरिया पैरासाइट के सम्पूर्ण जीवन चक्र का पता रौस ने गौरैया तथा अन्य पक्षियों के द्वारा किया था। रौस के बाद सन् 1898 में ग्रैसी ने मनुष्यों में मलेरिया पैदा करने वाले एनोफिलीज मच्छरों एवं मलेरिया पैरासाइट के जीवन चक्र का अच्छी तरह से अध्ययन किया एवं मलेरिया पैरासाइट की खोज को एक नया आयाम दिया।

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सन् 1924 में वैज्ञानिक यौर्क एवं फेअरले (Scientists York and  Fairley) ने आधुनिक खोज का शुभारम्भ किया । सन् 1945 में फेअरले ने इस बात की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि मनुष्य के रक्त में पहुंचने के लगभग आधे घंटे के बाद प्लाज्मोडियम के स्पोरोज्वायट्स रक्त प्रवाह से बिल्कुल गायब हो जाते हैं। फिर सात-आठ दिन बाद पुनः रक्त में दिखाई पड़ते हैं।

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माइक्रोस्कोप द्वारा परीक्षण

यह खोज बहुत ही महत्त्वपूर्ण समझी गई क्योंकि इससे वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि बीच में सात-आठ दिनों में प्लाज्मोडियम दूसरे ऊत्तकों में अपना जीवन चक्र पूर्ण करता है। सन् 1948 में शोर्ट गार्नहम और मैलेमौस ने बंदर की यकृत कोशिकाओं में मलेरिया पैरासाइट की खोज की। इसके बाद अन्य वैज्ञानिकों शोट, कावेल और श्यूट ने संक्रमित एनोफिलीज से एक मनुष्य को कटवाया। काटने के 3-4 दिनों के बाद उसके यकृत का माइक्रोस्कोप द्वारा उसका परीक्षण करने पर उसमें मलेरिया पैरासाइट्स की कुछ अवस्था दिखाई दी।

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आधुनिक खोज के अनुसार मलेरिया पैरासाइट (Malaria Parasite) चार भागों में अपना जीवन चक्र पूरा करता है। इसके दो होस्ट होते हैं-मनुष्य एवं मादा एनोफिलीज मच्छर। मादा एनोफिलीज एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में मलेरिया पैरासाइट को पहुंचाने का कार्य करती है। इस प्रकार मलेरिया का विस्तार होता रहता है।

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R. Singh

Name: Rina Singh Gender: Female Years Of Experience: 5 Years Field Of Expertise: Politics, Culture, Rural Issues, Current Affairs, Health, ETC Qualification: Diploma In Journalism

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