History Story : प्रतिशोध की ज्वाला

History Story : Flame of Vengeance

History Story: Flame of Vengeance
History Story: Flame of Vengeance

History Story : जब किसी आदमी के दिल में बदला लेने की आग सुलगती है तो वह परेशान और बेचैन हो जाता है। वह हर समय इसी उधेड़ बुन में रहता है कि बदला कैसे लिया जाये और इसके लिये उचित अवसर की तलाश में भी रहता है। वैसी ही स्थिति महाभारत के महारथी, दुर्योंधन के अभिन्न मित्रा द्रोण पुत्रा अश्वत्थामा की थी। जब से उसके पिता गुरू द्रोणाचार्य को धोखे से शस्त्र विहीन कर मार डाला गया और पाण्डव सेनापति धृष्टद्युम्न ने उसका सिर काटा था वह व्यथित रहने लगा था और बदला लेने की फिराक में था।

महाभारत युद्ध (Mahabharata War) का अठारहवां और अंतिम दिन था। कौरव सम्राट दुर्योधन भीम द्वारा गदा युद्ध में हार कर घायल अवस्था में खून से लथपथ भूमि पर पड़ा आखिरी घड़ियां गिन रहा था। उसके 99 भाई, बांधक, मित्रा, सहायक, सेनानायक आदि सब मारे जा चुके थे। उसकी विशाल सेना नष्ट हो चुकी थी केवल तीन महारथी-कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृत्तवर्मा ही बचे थे। जब इन तीनों ने अपने राजा को घायल हो कर पृथ्वी पर पड़े हुए सुना तो रथ पर सवार होकर देखने आ पहुंचे।

दुर्योधन की दयनीय दशा देख तीनों को इतना दुख हुआ कि शब्द उसको व्यक्त नहीं कर सकते। अश्वत्थामा ने पास बैठकर आंसू बहाये और कहा कि आपकी शानों शौकत, दबदबा और वैभव देवों के राजा इन्द्र से भी कम न था और आज आप की यह हालत। यह सब दुष्ट पाण्डवों की करनी है जिन्होंने सब महारथियों-भीष्म पितामह, मेरे पिता गुरू द्रोण, वीर कर्ण, जयद्रथ और आपको भी धोखे से मारा है। आप की यह दुर्दशा देख मैं अपने पिता की मौत का दुख भी भूल गया हूं। मैं इन सब करतूतों का बदला लूंगा, इसकी आपके सामने प्रतिज्ञा करता हूँ।

दुर्योधन बलवान तो था ही, विद्वान भी था। वह एक अच्छा शासक था। उसने प्रजा को खुश और सुखी रखा हुआ था। पाण्डवों ने बनवास के पश्चात पता लगाया था कि प्रजा दुर्योधन के साथ है। तभी तो दुर्योधन के पक्ष की सेना पाण्डवों की सेना से डेढ़ गुना से भी अधिक थी।

अपने उत्तर में दुर्योधन ने कहा कि हे मित्र अश्वत्थामा, मेरी मौत का दुख आप न करें। संसार में जो भी आया है, एक दिन अवश्य जायेगा। फिर मैं तो अंत तक युद्ध भूमि में डटा रहा हूं और लड़कर वीरगति को प्राप्त हो रहा हूं। यदि शास्त्र सच्चे हैं तो मैं स्वर्ग जाऊंगा। मैंने जीवन में सुख भी भरपूर भोगा है। बंधु बांधवों, मित्रों, सहायकों, सेनानायकों का खूब आदर सम्मान और प्यार पाया है। प्रजा का भी आदर पाया है। आप सब लोगों ने मेरी विजय के लिये भरसक प्रयास किया है किन्तु कुछ बातें विधाता के हाथ में होती हैं। होता वही है जो विधाता चाहता है।

दुर्योधन अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा से खुश हुआ और उसको पूरा करने को प्रोत्साहित किया। कुलगुरू,कृपाचार्य से पानी मंगवाकर अश्वत्थामा का तिलक करवा कर विधिपूर्वक शास्त्रानुसार सेनापति के पद पर नियुक्ति कर दी। अश्वत्थामा ने राजा को गले लगाया और जोर से युद्ध का बिगुल बजा दिया। थोड़ी देर और बैठ कर संध्या ढलने पर तीनों वहां से जंगल की ओर चल दिये ताकि पाण्डव उनका पता लगा कर वहां न आ जायें।

रास्ते में इनको पाण्डवों के डेरों से विजयी होने पर खुश होनेे नाचने गाने, बाजे गाजे, हंसी मजाक और मस्ती की आवाजें सुनाई दी। जब रात का अंधेरा बढ़ गया तो इन्होंने रथ को एक घने जंगल के किनारे रोक दिया और घोडे़ खोल दिये। कृपाचार्य और कृत्तवर्मा तो घायल होने और थकावट के कारण जल्दी सो गए किंतु अश्वत्थामा को घायल होने पर थकावट के बावजूद नींद कहां थी। उसको तो बदला लेने की जुगत सोचनी थी।

यकायक उसने एक बहुत बड़े बरगद के पेड़ पर सैंकड़ाें कौवों को बैठे देखा। थोड़ी देर में एक बड़ा सा उल्लू आया और उसने कौवों पर झपटना शुरू कर दिया। देखते ही देखते उस ने बहुतों की गरदन मरोड़ डाली, बहुतों के पेट फाड़ डाले तो बहुतों की टांगें तोड़ डाली और कुछ के पंख नोच ड़ाले। इस प्रकार उल्लू ने सब कौवों को मार डाला।

यह देख अश्वत्थामा को पाण्डवों और पंचालों को मारने की युक्ति मिल गई। उसने इस घटना को दैवी संकट माना और पाण्डवों के डेरों पर रात में चुपचाप हमला करने की ठान ली। उसने अपने दोनों साथियों को जगाया और उनके सामने अपनी तजवीज रखी जिसको दोनों ने नामंजूर कर दिया। दोनों ने कहा कि ऐसा करना धर्म, और मर्यादा के विरूद्ध है। इससे तुम बदनाम हो जाओगे।

मामा कृपाचार्य ने और भी कई तर्क देकर अश्वत्थामा को समझाया और कहा कि इस समय तुम घायल, थके हुए और क्रोध में हो। आराम करो और सवेरे पाण्डवों पर आक्रमण करना। हम तुम्हारा पूरा साथ देंगे और तुम विजयी होगे परन्तु अश्वत्थामा ने इन की एक न मानी। वह अपने निश्चय पर दृढ़ रहा।

उसने कहा कि धर्म और मर्यादा का उल्लंघन तो पहले ही पाण्डव कई बार कर चुके हैं। उनको उन की भाषा में जवाब देना धर्म सम्मत और न्यायोचित है। उसने रथ तैयार कर लिया और पाण्डवों के पड़ाव की ओर चल दिया। लाचार हो कर उस के दोनों साथी भी उसके पीछे हो लिये।

शिविर के निकट पहुंच अश्वत्थामा ने देखा कि पंचाल और पाण्डव सुख की नींद सो रहे हैं। इस बीच कृतवर्मा और कृपाचार्य भी उससे आ मिले जिन को उसने बाहर द्वार पर रहने को कहा ताकि अंदर से कोई बाहर भाग न सके और मार डाला जाये।
मुख्य द्वार को छोड़कर पहरेदारों की नज़र बचाकर अश्वत्थामा किसी छोटे द्वार से अंदर घुसा।

धीरे धीरे चलकर सब से पहले सेनापति धृष्टद्युम्न के कक्ष में गया जो मखमल के गद्दे पर फूलों की सेज पर सो रहा था। उसको पांव की ठोकर से जगाया और बालों से पकड़ कर धरती पर पटक दिया और लातों घूसों से मारना शुरू कर दिया। अचानक नींद में हमला होने से वह डर गया और कुछ न कर सका सिवाये इसके कि उसने अश्वत्थामा को नाखूनों और दांतों से लहूलुहान कर दिया।

हजारों बहादुरों को मौत की नींद सुला दिया (History Story in Hindi)

धृष्टद्युम्न ने शस्त्र से मारने को कहा पर अश्वत्थामा ने एक न सुनी और पूरी ताकत से पांव की ठोकरों से उसे मार डाला। धृष्टद्युम्न की चीखों से औरतें और पहरेदार जाग उठे। उन्होंने समझा कि भूत आ गया है और डर के मारे सहम गये और सुधबुध खो बैठे। एक डेरे में उत्तमौजा सोया पड़ा था, उस को गला दबा कर मार डाला। उत्तमौजा की चीखें सुन मुधामन्यु गदा लेकर मुकाबले में आया लेकिन अश्वत्थामा ने उसे पकड़ कर जमीन पर गिरा दिया और गला घोंट कर मार दिया। इस प्रकर उसने सोये हुए हजारों बहादुरों को मौत की नींद सुला दिया।

History Story: Flame of Vengeance
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सब तरह के अस़्त्र शस्त्रों का ज्ञाता था अश्वत्थामा (History Story in Hindi)

जोर-जोर से रोने और चिल्लाहट की आवाजों से पंचाल लोग जाग गये। बहुतों ने कवच पहन कर और शस्त्रा लेकर अश्वत्थामा को घेर लिया लेकिन अश्वत्थामा सब तरह के अस़्त्र शस्त्रों का ज्ञाता था। उस ने बात ही बात में रूद्र अस्त्रा से सबका सफाया कर दिया। फिर उसने तलवार निकाली और मौत की तरह चारों तरफ घूमने लगा। बहुत थोड़ी देर में उसने पंचाल लोगों और राजा द्रुपद के बेटों को मौत के घाट उतार दिया।

राजा विराट की सारी सेना का अंत (History Story)

उसका सारा शरीर और कपड़े खून से लाल थे और सूरत बड़ी डरावनी लग रही थी। बहुत से लोगों ने उसे राक्षस समझा और दूर से ही देखकर भागने लगे लेकिन दरवाजे पर कृत्तवर्मा और कृपाचार्य का शिकार हो गये। इतने में द्रोपदी के पाचों बेटे कवच पहन कर और शस्त्रों से लैस होकर इस के सामने आ गये मगर अश्वत्थामा ने इन्हें जल्दी ही बड़ी बेदर्दी से काट डाला। तत्पश्चात शिखण्डी की तलवार के एक ही वार से दो टुकड़े कर दिए। राजा विराट की सारी सेना को क्षण भर में गाजर मूली की तरह काट के रख दिया।

चारों ओर अजीब शोर-गुल (History Story in Hindi)

चारों ओर अजीब शोर-गुल चीख पुकार और हल्ला था। हाथियों और घोड़ों ने रस्से तुड़वा लिये और डेरों में बेतहाशा दौड़ने लगे। इन के पांव के नीचे सैंकड़ों आदमी कुचले गये। काली रात, हाथियों घोड़ों की भगदड़, अजीब घबराहट और अर्धनिद्रा के कारण लोगों ने अपने ही आदमियों को दुश्मन समझ लिया और आपस में मार काट शुरू कर दी। इससे हजारों बहादुर अपने ही आदमियों के हाथों मारे गये। इससे अश्वत्थामा को कुदरत की तरफ से भी सहायता मिल गई।

कृत्तवर्मा को अश्वत्थामा की सहायता का विचार (History Story)

इस दौरान कृत्तवर्मा को अश्वत्थामा की सहायता का विचार आया। उसने डेरों में जगह जगह आग लगा दी जो तेजी से भड़क उठी। फिर कृत्तवर्मा और कृपाचार्य अश्वत्थामा से आ मिले और तीनों ने मिलकर पाण्डवों की भागती हुई सेना के एक एक आदमी को मार डाला। कोई भी अपनी जान न बचा सका। इस तरह अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा पूरी हुई और पिता की मृत्यु का दुख उसके दिल से दूर हो गया। खून से लथपथ तीनों आक्रमणकारी डेरों से बाहर निकले, एक दूसरे को गले लगाया और अपनी सफलता पर खुश हुए और गर्व महसूस किया।

‘मैंने सब का बदला ले लिया’ (History Story)

जब तीनों महारथी अपनी सफलता की सूचना देने राजा दुर्योधन के पास पहुंचे तो वह आधे बेहोशी में थे मगर कुछ जान बाकी थी। उसकी वह अवस्था देख तीनों जोर जोर से रोने लगे। अश्वत्थामा ने जोर से पुकारा और कहा कि महाराज मेरी हृदय को प्रफुल्लित करने वाली खबर को सुनिये। मैंने सब का बदला ले लिया है। अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली है। बीती रात पाण्डवों के डेरों में घुस कर उनकी सारी बची खुची सेना, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, उत्तमौजा, युधामन्यु और द्रौपदी के पांचों बेटों को मार डाला है। उन पाण्डव सेना में पांच पाण्डव, कृष्ण और सात्यकि केवल सात आदमी जीवित रह गये हैं।

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दुर्योधन का अंत (History Story)

यह खबर सुनकर दुर्योधन को कुछ होश आया और धीमी आवाज से उस ने कहा, ‘बहादुर भीष्म और आप के पिता से जो काम नहीं हुआ’ वह आप ने कृत्तवर्मा और कृपाचार्य से मिलकर कर दिखाया। नीच पंचालों का मारा जाना सुन कर मैं आज अपने को बहुत खुशकिस्मत समझता हूं। परमात्मा आप तीनों का भला करे। अब स्वर्ग में आप से मेरी भेंट होगी। यह कहकर दुर्योधन ने तीनों को बारी बारी से गले लगाया और दम तोड़ दिया।

पाण्डवों का डर (History Story in Hindi)

उस वक्त तीनों को जो दुख हुआ वह वर्णन नहीं किया जा सकता। दुर्योधन के शव को बार बार गले लगा कर तीनों पाण्डवों के डर से वहां से खिसक गये। इस प्रकार महाभारत के युद्ध कौशल और सब प्रकार के अस्त्र शस्त्रों के प्रयोग की दक्षता की प्रशंसा करनी पड़ेगी। क्योंकि उस समय डेरों में हजारों सैनिक, कई अच्छे योद्धा और महारथी मौजूद थे तथा पर्याप्त मात्रा में अस्त्र शस्त्रा भी थे।

Adventure Story : अघोरी बाबा का प्रसाद-रहस्य रोमांच

संसार में आज तक किसी अकेले आदमी ने इतने ज्यादा आदमियों को इतने थोड़े समय में नहीं मारा जितनों को अश्वत्थामा ने रात के कुछ घंटों में मार डाला। विनाश इतना भारी हुआ कि युधिष्ठिर को कहना पड़ा, ‘हम जीती बाजी हार गये।’

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