Dhanteras : धन बरसे! सबका मन हरषे!

Dhanteras : It rains money! May everyone's heart be happy!

Dhanteras : It rains money! May everyone's heart be happy!
Dhanteras : It rains money! May everyone’s heart be happy!

Dhanteras 2023 : हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व (Dhanteras festival) मनया जाता है। धनतेरस की तिथि इस साल 10 नवंबर को दोपहर 12:35 बजे से शुरू होगी और अगले दिन 11 नवंबर को दोपहर 01:57 बजे समाप्त होगी। धनतेरस के दिन प्रदोष काल में पूजा होती है, इसलिए धनतेरस 10 नवंबर को ही मनाई जाएगी। इस दिन धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त (Auspicious time of Dhanteras puja) शाम 6:02 बजे से रात 8:00 बजे तक रहेगा।

धन कहीं कर्म से मिलता है तो कहीं भाग्य से। धन से सब कुछ मिल सकता है किन्तु ईमानदार व्यक्ति का ईमान नहीं। धन के बल पर किसी भी क्षेत्र में घुसपैठ कर स्थापित हुआ जा सकता है। धन पिपासु सुख-चैन व नींद तक छीन लेता है। धन पिपासु व्यक्ति मानवता शून्य व निष्ठुर हो जाता है। अधिक धन, कम धन को चुम्बक की भांति अपनी ओर आकर्षित करता है इसीलिए धनी व्यक्ति और धनी एवं निर्धन और निर्धन होता जा रहा है।

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कुबेर माने जाते हैं धन के देवता (Dhanteras)

कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को अपभ्रंश रूप में ’धन तेरस‘ कहते हैं। यह अब पूरे भारत में ’धन तेरस‘ के रूप में ही स्थापित हो चुका है। धन के देवता कुबेर माने जाते हैं। कुबेर देवों के धनाधीश हैं। वास्तव में कार्तिक कृष्ण त्रायोदशी धन्वन्तरि के प्राकट्य का जन्म दिवस है। धन्वन्तरि सर्वाधिक प्राचीन चिकित्सा विधि एवं आयुर्वेद ग्रंथ के प्रणेता, रचयिता हैं। धन्वन्तरि देवताओं के वैद्य हैं। कार्तिक कृष्ण त्रायोदशी, धन त्रायोदशी, धन तेरस, धन्वन्तरि त्रायोदशी, सबका मिला-जुला रूप अब समाज में व्यवहृत होता है।

लक्ष्मी पूजा का प्रारम्भ दिवस है Dhanteras

यह दिन दीपावली त्यौहार, लक्ष्मी पूजा का प्रारम्भ दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन क्रय की गई वस्तु चिरस्थाई, वर्धक व शुभ होती है। इस दिन किसी भी धातु की खरीद को विशेष महत्त्व दिया जाता है। देश में इस दिन सर्वाधिक क्रय-विक्रय एवं व्यवसाय होता है। कदाचित इस दिन इसका विश्वव्यापी कीर्तिमान भारत में ही बनता हो।

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तांबे व कांसे के पात्र को देव पूजा में सर्वाधिक महत्त्व

वैसे सभी धातुओं का अपना गुण होता है। इसके गुणानुसार क्रम इस प्रकार बनता है – सोना, चांदी, कांसा, तांबा, स्टील, लोहा, पीतल आदि। तांबे व पीतल के बर्तन में रखे पानी के गुण में वृद्धि होती है। यह स्वच्छ व स्वास्थ्यवर्धक होता है। तांबे व कांसे के पात्र को देव पूजा में सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता व मिलता है किन्तु तांबे, कांसे व पीतल के बर्तन में खट्टा पदार्थ नहीं रखना चाहिए। यह धातु से प्रतिक्रिया कर गुण खो देता है, विषैला बन जाता हैं।

कमर के ऊपर स्वर्णाभूषण एवं नीचे रजत आभूषण धारण किया जाता है। सर्वाधिक महीन काम, कारीगरी, कलाकारी सोने पर किया जा सकता है। इसका गुमना व लावारिस मिलना दोनों को अच्छा नहीं माना जाता।

देव व दैत्यों के बीच समुद्र मंथन के समय क्षीरसागर से धन्वन्तरि हाथ में श्वेत कमण्डल में अमृत रखकर अठारहवें रत्न के रूप में प्रकट हुए थे। इन्होंने सर्वाधिक प्राचीन चिकित्सा पद्धति व उसके ग्रंथ आयुर्वेद शास्त्र का आठ भागों में प्रवर्तन किया था।

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Dhanteras में कुबेर की पूजा (Kuber Puja)

कुबेर की पूजा (Kuber Puja) धन सम्पत्ति व धन भण्डार के लिए की जाती है। दीपावली (Diwali) के धनतेरस (Dhanteras) के दिन ही इसकी मुख्य पूजा की जाती है। ग्रहों की पूजा के समय कुबेर की भी पूजा का विधान है। देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर का निवास धन, सम्पत्ति एवं अनाज भण्डार कोठी, तिजोरी को माना गया है। प्राचीन ग्रंथों में कहीं-कहीं इन्हें रावण का सौतेला भाई बताया गया है।

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Dhanteras Puja में दीप दान का विधान

कुबेर कुरूप हैं। उसका तात्पर्य है कि धन से ही सब कुछ नहीं मिल जाता है। कहीं न कहीं कुछ कमी रहती है। धन से रूप नहीं मिलता। धन का रूप विकृत भी होता है। कुबेर राक्षसी कुल से था। राक्षसी संस्कृति थी किन्तु धन सम्पदा आदि भौतिक भण्डारों से भरपूर थे इसलिए स्वीकार्य व पूज्य है। धनतेरस से लेकर तीन या पांच दिन तक विभिन्न स्थानों में दीप दान का विधान है। इससे सुख, सम्पत्ति व स्वास्थ्य सब कुछ मिलता है।

धन किसी का दास नहीं

महाभारत ग्रंथ में मनुष्य को धन का दास कहा गया है किन्तु धन किसी का दास नहीं है। रामायण में कहा गया है कि किसी के पास धन होते ही उसे मित्रा, बंधु-बांधव सब मिल जाते हैं। सब अपने होते हैं। वैसे संसार में धनवान ही बुद्धिमान व पुरूषार्थी माना जाता है। विद्या व कुल के स्थान पर लोगों का झुकाव सदैव धनवान की ओर ही होता है। अनुराग भी इसी के प्रति होता है।

धन के बिना सभी गुण व्यर्थ? (Dhanteras 2023)

धन के बिना सभी गुणों को पंचतंत्र में व्यर्थ बताया गया है। धनहीन मनुष्य को बंधु बांधव, मित्र , परिजन सब छोड़ जाते हैं, इसीलिए धन ही मनुष्य का संसार में सच्चा बंधु एवं साथी है। वृद्ध पुरूष के पास धन है तो वह तरूण व जवान है जबकि धनहीन व्यक्ति युवावस्था में वृद्ध के समान है। धन की गर्मी के बिना मनुष्य कुछ ही क्षण में कुछ का कुछ हो जाता है। धन के कम होने पर मित्र की मित्रता भी शिथिल पड़ जाती है।

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टिकाऊ होता है तिल-तिल एकत्रित धन

किसी के पास जिस तीव्रता से धन आता है, उसी तीव्रता से चला भी जाता है। तिल-तिल एकत्रित धन टिकाऊ होता है। धन से शरीर में गर्मी आती है। चेहरा खिल उठता है। शरीर कांतिमान हो जाता है। वैसे धन झगड़े का प्रमुख कारण भी बनता है। जर, जोरू, जमीन से तीन कलह के कारण बनते हैं। धन किसी भी माध्यम से मिले, दान करने से फलता है, विस्तारित होता है।

वैसे धन पिपासा मनुष्य का सुख चैन भी छीन लेती है। नींद तक गायब हो जाती है। धन पिपासु निष्ठुर एवं मानवता शून्य हो जाता है। अपना कमाया धन खाना उत्तम, पिता का कमाया धन खाना मध्यम, भाई का कमाया धन खाना अधम एवं स्त्राी का कमाया धन खाना अधम से अधम है। बुद्धिमान व्यक्ति अपनी कमाई के धन का उपयोग रसायन, दवा की भांति धीरे-धीरे संभलकर करता है।

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धन की तीन गति होती है

धन की तीन गति होती हैं दान, भोग व नाश। जो धन का दान व भोग नहीं करता, वह नाश हो जाता है। धन जिसका गुलाम हो, वह भाग्यवान है किन्तु यदि कोई धन का गुलाम है तो वह अभागा है। अपनी आय से अपना निर्वाह करने वाले के पास समझो पारस पत्थर है। धनवान के पास एक समय ऐसा भी आता है जब उसकी भूख की तृप्ति धन से नहीं होती।

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संस्कृत में धन को क्या कहते हैं?

संस्कृत में धन को द्रव्य कहा गया है। द्रव्य तरल होता है। यह पानी की तरह बह जाता है। स्थिर रहने पर रूके पानी की तरह बदबू आने लगती है। कुछ भी धन न हो तो सेवा करें। धन कम है तो खेती करें और अधिक धन है, तब व्यवसाय करें। धन का न होना मृत्यु है। धन से धर्म और धर्म से सुख मिलता है। धन से प्रसन्नता मिलती है। यह राष्ट्र रूपी शरीर के लिए रक्त के समान है।

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