Bhaiya Dooj 2023 : भाई-बहन के पवित्र प्यार का पर्व है भैया दूज

Bhaiya Dooj is the festival of sacred love between brother and sister

Bhaiya Dooj is the festival of sacred love between brother and sister
Bhaiya Dooj is the festival of sacred love between brother and sister

Bhaiya Dooj 2023 : हिन्दू समाज में भाई-बहन के पवित्र रिश्तों का प्रतीक पर्व है यह भैया दूज (Bhai Dooj) पर्व। दीपावली पांच पर्वों का संगम है, उसी से जुड़ा है यह पर्व। एक ऐसा पर्व जो घर-घर मानवीय रिश्तों में नवीन ऊर्जा का संचार करता है। बहनों में उमंग और उत्साह को संचरित करता है, वे अपने प्यारे भाइयों के टीका लगाने को आतुर होती हैं। बेहद शालीन और सात्विक यह पर्व सदियों पुराना है। इस पर्व से भाई-बहन ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवीय संवेदनाओं का गहरा नाता रहा है।

भाई और बहन के रिश्ते को यह फौलाद-सी मजबूती देने वाला है। आदर्शों की ऊंची मीनार है। सांस्कृतिक परंपराओं की अद्वितीय कड़ी है। रीति-रिवाजों का अति सम्मान है। भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को फिर स्थापित करने, एक श्रेष्ठ और मूल्यनिष्ठ समाज एवं परिवार की स्थापना करने, पूरे विश्व को एकता, सौहार्द एवं प्रेम के सूत्र में बांधने तथा सभी मनुष्यों को पवित्रता के संकल्प में बंधकर हर एक को इसकी पहल करने का अलौकिक संदेश देता है भैया दूज का पर्व।

भैया दूज भारत में कई जगह अलग-अलग नामों के साथ मनाई जाती है। बिहार में भिन्न रूप में मनाया जाता है, जहां बहनें भाईयों को खूब कोसती हैं फिर अपनी जबान पर कांटा चुभाती हैं और क्षमा मांगती हैं। भाई अपनी बहन को आशीष देते हैं और उनके मंगल के लिए प्रार्थना करते हैं। गुजरात में यह भाई बीज के रूप में तिलक और आरती की पारंपरिक रस्म के साथ मनाया जाता है।

महाराष्ट्र और गोवा के मराठी भाषी समुदाय के लोग भी इसे भाई बीज के तौर पर मनाते हैं। यहां बहने फर्श पर एक चैकोर आकार बनाती हैं, जिसमें भाई करीथ नाम का कड़वा फल खाने के बाद बैठता है। भैया दूज के बहाने स्वजनों और भाइयों से भेंट की भावना छिपी होती थी। सभी शादीशुदा लड़कियां अपने ससुराल में भाई को बुलाती है और खूब सत्कार करती है।

बहन के द्वारा भाई की रक्षा के लिये मनाये जाने वाले इस पर्व को हिन्दू समुदाय के सभी वर्ग के लोग हर्ष उल्लास से मनाते हैं। इस पर्व पर जहां बहनें अपने भाई को टीका लगाकर उनके जीवन रक्षा, दीर्घायु व सुख समृद्धि की कामना करती हैं तो वहीं भाई भी सगुन के रूप में अपनी बहन को उपहार स्वरूप कुछ भेंट देने से नहीं चूकते। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है।

त्यौहारों का विशेष महत्व (Bhaiya Dooj)

पारिवारिक सुदृढ़ता, सांस्कृतिक मूल्य एवं आपसी सौहार्द के लिये त्यौहारों का विशेष महत्व है। इन्हीं त्यौहारों में भाई-बहन के आत्मीय रिश्ते को दर्शाता है यह एक अनूठा त्यौहार। इस पर्व के पीछे यही संदेश है कि भाई-बहन के संबंध में पवित्रता, स्नेह, प्रेम, सहयोग, सौहार्द एवं अहिंसा की जैसी पवित्र भावना है, चह भावना हमें सभी मनुष्यजनों तथा सभी प्राणियों के प्रति धारण करनी चाहिए। ऐसे आचरण से ही इंसान इंसान बन सकता है। भैया दूज का आध्यात्मिक महात्म्य भूलने के कारण ही मर्यादाओं का दायरा सिकुड़ रहा है, महिलाओं एवं बहनों पर अत्याचार-व्यभिचार बढ़ रहे हैं।

आज भाईयों की बहनों के प्रति रक्षा भावना एवं आत्मीयता कमजोर होती जा रही है। इसलिये समय की मांग है कि हम भैया दूज के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक महात्म्य को जाने और उसे अपने जीवन में दृढ़तापूर्वक अपनाएं। तभी हमारे भीतर व्याप्त आसुरी प्रवृत्तियों का नाश हो सकता है और समाज में सच्ची शांति, प्रेम, सौहार्द एवं विश्वबंधुत्व की भावना का पुनः संचार हो सकता है।

Bhaiya Dooj 2023 : इस त्यौहार को मनाने के पीछे की ऐतिहासिक कथा

इस त्यौहार को मनाने के पीछे की ऐतिहासिक कथा भी निराली है। पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। यमुना ने अपने भाई यमराज को आमंत्रित किया कि वह उसके घर आकर भोजन ग्रहण करें, किन्तु व्यस्तता के कारण यमराज उनका आग्रह टाल जाते थे। यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता।

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बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया।

यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर दिया (Bhaiya Dooj)

यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर दिया कि जो भी इस दिन यमुना में स्नान करके बहन के घर जाकर श्रद्धापूर्वक उसका सत्कार ग्रहण करेगा उसे व उसकी बहन को यम का भय नहीं होगा। तभी से लोक में यह पर्व यम द्वितीया के नाम से प्रसिद्ध हो गया। भाइयों को बहनों टीका लगाती है, इस कारण इसे भातृ द्वितीया या भाई दूज भी कहते हैं।

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इस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल लगाती हैं। उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे-धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए मंत्र बोलती हैं कि ‘गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे, मेरे भाई की आयु बढ़े’। एक और मंत्र है- ‘सांप काटे, बाघ काटे, बिच्छू काटे जो काटे सो आज काटे’ इस तरह के मंत्र इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन अगर भयंकर पशु भी काट ले तो यमराज भाई के प्राण नहीं ले जाएंगे। संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं।

Bhaiya Dooj 2023 : भाई-बहन के पवित्र प्यार का पर्व है भैया दूज
Bhaiya Dooj 2023 : भाई-बहन के पवित्र प्यार का पर्व है भैया दूज

आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा (Bhaiya Dooj 2023 )

इस दिन एक विशेष समुदाय की औरतें अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा करती है। स्वर्ग में धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम किया जाता हैं। वे इस दिन कारोबारी बहीखातों की पूजा भी करते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि यदि बहन अपने हाथ से भाई को भोजन कराये तो भाई की उम्र बढ़ती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। इस दिन बहनें भाइयों को चावल खिलाती है। यदि कोई बहन न हो तो गाय, नदी आदि स्त्रीत्व का ध्यान करके अथवा उसके समीप बैठ कर भोजन कर लेना भी शुभ माना जाता है।

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भाई-बहन के प्यार (Bhaiya Dooj 2023)

भैया दूज के बारे में प्रचलित कथाएं सोचने पर विवश कर देती हैं कि कितने महान उसूलों और मानवीय संवेदनाओं वाले थे वे लोग, जिनकी देखादेखी एक संपूर्ण परंपरा ने जन्म ले लिया और आज तक बदस्तूर जारी है। आज परंपरा भले ही चली आ रही है लेकिन उसमें भावना और प्यार की वह गहराई नहीं दिखायी देती। अब उसमें प्रदर्शन का घुन लग गया है। पर्व को सादगी से मनाने की बजाय बहनें अपनी सज-धज की चिंता और तिलक के बहाने कुछ मिलने के लालच में ज्यादा लगी रहती हैं।

भाई भी उसकी रक्षा और संकट हरने की प्रतिज्ञा लेने की बजाय जेब हल्की कर इतिश्री समझ लेता है। अब भैया दूज में भाई-बहन के प्यार का वह ज्वार नहीं दिखायी देता जो शायद कभी रहा होगा। इसलिए आज बहुत जरूरत है दायित्वों से बंधे भैया दूज पर्व का सम्मान करने की। क्योंकि भैया दूज महज तिलक लगाने एवं उपहार देने की परंपरा नहीं है। लेन-देन की परंपरा में प्यार का कोई मूल्य भी नहीं है। बल्कि जहां लेन-देन की परंपरा होती है वहां प्यार तो टिक ही नहीं सकता।

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ये कथाएं बताती हैं कि पहले खतरों के बीच फंसे भाई की पुकार बहन तक पहुंचती तो बहन हर तरह से भाई की सुरक्षा के लिये तत्पर हो जाती। आज घर-घर में ही नहीं बल्कि सीमा पर भाई अपनी जान को खतरे में डालकर देश की रक्षा कर रहे हैं, उन भाइयों की सलामती के लिये बहनों को प्रार्थना करनी चाहिए तभी भैया दूज का यह पर्व सार्थक बन पड़ेगा और भाई-बहन का प्यार शाश्वत एवं व्यापक बन पायेगा।

प्र्रेेषकः

(ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोनः 22727486, 9811051133

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R. Singh

Name: Rina Singh Gender: Female Years Of Experience: 5 Years Field Of Expertise: Politics, Culture, Rural Issues, Current Affairs, Health, ETC Qualification: Diploma In Journalism

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